अनोखी किस्मत
भाग 12
अभी तक आपने पढ़ा राधिका रघुनंदन से नाराज हो जाती है और अपने गांव जाने की बात कहती हैं।
रजिया काकी राधिका से पूछती है। "क्या हुआ बेटा!"
राधिका बोली
"ना जा पाई नन्दू का मुंह देख कर रह गई , बेचारा इतना मासूम है उसकी ममता रोक गई ।
रजिया काकी बोली! "हम तो कहेंगे कि बिटिया तुम्हारे लिए यही सही है और आज मांग में सिंदूर भरकर अच्छी लग रही हो हमेशा इसी तरह श्रृंगार करो हमारा आशीर्वाद है "।
राधिका ने सुहागनों की तरह रहना शुरू कर दिया था। लेकिन अभी रघुनंदन जी को माफ नहीं कर पाई थी राधिका के घर में रहते , कोई भी घर पर आता तो ठाकुर साहब से कहता।
ठाकुर साहब
"सही कहा "घर में बिना औरत की शोभा नहीं रहती घर की शोभा औरत से होती है!"
रघुनंदन जी इतना सुनते ही खुश हो जाते हैं लेकिन अंदर हमेशा उदास रहते ।
दीनू काका और रजिया चाहते हैं कि राधिका और रघुनंदन एक हो जाए, उनके बीच की दूरियां मिट जाए अगर भगवान ने दोनों को जोड़ा है तो बीच में गांठ क्यों रह गई?
ऐसे ही दिन बीते जा रहे थे रघुनंदन राधिका को पसंद करने लगे और करें भी क्यों नहीं पसंद राधिका जैसी सुघड ग्रहणी ने उनके बच्चे और बिखरे हुए घर को संवार दिया।
राधिका के आने से उनका घर घर जैसा लगने लगा था।
ऐसे ही दो माह बीत गए ,एक दिन
रघुनंदन बोले, "मेरे दोस्त की भतीजी की शादी का निमंत्रण है, हम दो दिन बाद निकलना है। जो भी तुम्हें समान चाहिए सोनिया भाभी के साथ खरीद लाना। और देने को कुछ उपहार भी ले आना"।
हमें आशीर्वाद देने जाना पड़ेगा और आपको जो भी खरीदना है। आज सोनिया भाभी के साथ जाकर ले आना और यह दो रूपये,क्योंकि परसों हमें निकलना होगा "।
राधिका फिर "तुनक कर बोली ठीक है ठीक है मैं सब कर लूंगी! लेकिन दीनू काका का क्या होगा उनके लिए खाना कौन बनाएगा?"
रघुनंदन बोले।
"आप चिंता ना करो ना कुछ इंतजाम कर दूंगा।"
राधिका सोनिया से बोली "एक शादी में जाना है। लेकिन दीनू काका कहां खाना खाएंगे ?इसकी चिंता है सोनिया बोली बस इतनी सी बात वह सब मैं देख लूंगी तुम चिंता मत करो जाने की तैयारी करो"।
राधिका और सोनिया ने मिलकर खरीदारी की।
राधिका तैयार होने लगी।
रजिया काकी बोली " मैं सोनिया को बुला कर लाती हूं तुम्हें अच्छे से तैयार कर देगी।"
सोनिया को आते हुए देख रघुनंदन सिंह बोले" सोनिया
भाभी उनसे कहिए कि जो संदूक में गहने रखे हैं वह भी पहनले मैं कहूंगा तो नहीं पहनेंगी। लेकिन आप कहेंगी तो आपकी बात जरूर मान लेगी।"
सोनिया ने कहा ठीक है। भाई साहब !"आप चिंता ना करें मैं मना लूंगी। और कुछ कहना है तो बता दीजिए मैं कह दूंगी ।"और मुस्कुराती हुई अंदर चली गई ।
सोनिया ने तैयार किया।
राधिका खुद को दर्पण में देखकर शर्माने लगी।
"सोनिया बोली लाओ तुम्हारे काला टीका लगा दूं ।कहीं नजर ना लग जाए वहांँ पर आप बहुत सुंदर दिख रही हो।"
बीच की मांग निकाल कर बड़ा सा जूड़ा ,माथे पर मांग टीका, कानों में झुमके , हाथों में कांच की चूड़ियां, और सीतारामी हार गहरे हरे रंग की बनारसी साड़ी हाथों में चूड़ियां साथ में सोने के कंगन कमर में कमर बंध और पैरों में पायल पहन कर वह किसी रानी से कम नहीं लग रही थी।
तभी नन्दू बाहर आया और बाहर से रघुनंदन सिंह का हाथ पकड़कर अंदर ले गया,"देखो माँ आज कितनी सुंदर लग रही है"। बोलो ना बाबा!
रघुनंदन जी तो राधिका को देखते ही रह गए।
इतने में नंदू फिर बोला! "बोलो ना बाबा! मेरी मां बहुत सुंदर लग रही ह ना,"
हां तेरी मां बहुत सुंदर लग रही है ।और इतना कहकर रघुनंदन जी अंदर से बाहर आ गए , सोनिया ने रघुनंदन जी के भावों को बहुत पहले से पढ़ लिया था।
तांगे पर समान चढ़ाया जा रहा था बस अब निकलने ही वाले थे बाहर आकर राधिका ने सोनिया से कहा' "बहन दीनू काका का ध्यान रखना"।
रघुनंदन नंदू और राधिका तीनों मित्र की भतीजी की शादी में जाने के लिए तांगे पर बैठ गए।
थोड़ी ही देर में तांगा गांव की सीमा से बाहर आ गया ।
अब नजर आते तो कहीं खेतों में काम करते हुए लोग, नजर आ रही थी कई पेड़ों की घनी छाया।
राधिका का पल्लू भी बार बार गिर रहा था ऊपर से उसने भारी भरकम गहने, इन सब की उसको आदत तो थी नहीं।
दोनों की नजरें एक दूसरे से टकराती । फिर दोनों एक-दूसरे से नजरें चुराते इधर-उधर देखने लग जाते।
दोनों ही एक साथ आँख मिचोली खेल रहे थे।
तभी तांगेवाला बोला ठाकुर साहब अब थोड़ी देर सुस्ता लेते हैं ।
,अगर कोई कुआं दिखाई दे तो पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं और तांगा भी खड़ा कर दूंगा।
रघुनंदन जी बोले ठीक है।
जी बिल्कुल और कुछ जलपान की व्यवस्था कर लेंगे भूख भी लगाई होगी ।और अभी वहां पहुंचने में ना जाने कितना समय लगे ।
तभी एक जगह दिखाई दी रघुनंदन सिंह जी को एक तांगे वाले खड़ा हुआ दिखाई दिया तांगेवाले ने अपना तांगा
वहीं रोक दिया। वह तो गांव के ही निकले वह परिवार भी उसी शादी में जा रहा था। लेकिन उनको रूके हुए बहुत देर हो गई थी।
तो उन्होंने रघुनंदन सिंह से कहा हम चलेंगे आप लोग विश्राम कीजिए और इतना कहकर वो लोग चले गए।
तांगेवाले ने तांगे में से बाल्टी निकाली। सभी ने हाथ पांव धोए। घोड़े को दाना पानी डाला और पानी पिलाया।
राधिका घर से पूरी सब्जी अचार लाई थी।
सब ने साथ में भोजन किया और थोड़ी देर बाद विश्राम करने के बाद अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। दुपहरी थोड़ी-थोड़ी चढ़ आई थी,
सूरज भी गर्मी फेंक रहा था , राधिका की गोदी में सर रखकर नन्दू सो गया था ,और अब राधिका को भी बार-बार झपकी आ रही थी।
रघुनंदन जी ने राधिका को अपने कंधे का सहारा दिया ताकि राधिका थोड़ी देर आराम से सो पाए।
थोड़ी देर बाद राधिका की आंखें खुली तो उसने देखा कि वह रघुनंदन सिंह के कांधे से टिकी हुई है।
झटपट उसने अपने आप को हटाकर, रघुनंदन को घूर कर देखने लगी ।
रघुनंदन सिंह जी मुस्कुरा कर दूसरी ओर देखने लगे।
शाम होने वाली थी आधा रास्ता पार हो चुका था।
तभी राधिका मोर को देखकर "मुझे मोर देखना है"।
रघुनंदन जी उसकी बाल सुलभ हरकत पर हंसने लगे।
उनको हंसता देखकर राधिका बोली 'मुझे नहीं देखना कोई मोर है आप तांगे को आगे बढ़ाइएं।
रघुनंदन जी बोले नहीं नहीं हम सब मोर देख कर ही जाएंगे।
राधिका मोर को देखकर बहुत खुश हुई। रघुनंदन जी तो उसको एकटक निहार रहे थे।
नंदू और राधिका बहुत खुश थे। तांगे में बैठे और आगे चल दिए।
अब आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए और मेरा हौसला बढ़ाते रहिए।
धन्यवाद आपके लाइक कमेंट मुझे प्रेरित करते हैं।
Natasha
16-May-2023 10:34 PM
Nice
Reply
Abhinav ji
15-May-2023 08:59 AM
Very nice 👍
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Mukesh Duhan
14-May-2023 10:25 PM
Nice ji
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